एयर डिफेंस सिस्टम (वायु रक्षा प्रणाली) एक ऐसा संगठित रक्षा तंत्र है जो देश की हवाई सीमाओं की निगरानी करता है और दुश्मन के हवाई हमलों जैसे फाइटर जेट, ड्रोन, मिसाइल और बमबारी को निष्क्रिय करने का कार्य करता है। यह सिस्टम किसी देश की संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा का पहला कवच होता है।
भारत ने अपने एयर डिफेंस सिस्टम की नींव 1962 के चीन युद्ध और 1965 के पाकिस्तान युद्ध के बाद रखी। शुरुआती वर्षों में रूस से पिचौरा और ओसा मिसाइल सिस्टम मंगवाए गए।
भारत के पास अब उन्नत रडार तकनीक है जो दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखती है:
Rohini 3D रडार
Aslesha Low-Level Radar
Swordfish रडार – बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग
उत्तम AESA रडार – स्वदेशी विमान रडार
🔹 सुरक्षा में योगदान
ये रडार दुश्मन के एयरक्राफ्ट, ड्रोन और मिसाइलों की पहचान करते हैं और एयर डिफेंस सिस्टम को अलर्ट करते हैं।
8️⃣ IAF और BEL का योगदान
🔹 IAF की भूमिका
भारतीय वायुसेना (IAF) देश के वायु क्षेत्र की सुरक्षा के लिए मुख्य जिम्मेदार है। ये एयर डिफेंस सिस्टम को ऑपरेट करती है और समय-समय पर अपग्रेड भी करती है।
🔹 BEL की तकनीकी योगदान
BEL (Bharat Electronics Limited) रडार, मिसाइल लॉन्चर्स, कंट्रोल सिस्टम, और अन्य रक्षा हार्डवेयर का निर्माण करती है। BEL के बनाए रडार आज भारत की निगरानी क्षमता को मजबूत बनाते हैं।
9️⃣ भारत का रक्षा सहयोग
🔹 अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
भारत ने रूस, इजराइल, अमेरिका और फ्रांस से तकनीकी सहायता ली है:
रूस: S-400, IGLA
इजराइल: Barak-8, SPYDER
अमेरिका: NASAMS डील की चर्चा
फ्रांस: रडार तकनीक
🔹 भविष्य की योजनाएँ
NASAMS 2 एयर डिफेंस सिस्टम
Hypersonic Defence Systems
AI आधारित ट्रैकिंग और ऑटो फायर सिस्टम
🔚 निष्कर्ष
भारत का एयर डिफेंस सिस्टम अब एक आधुनिक, परतदार और स्वदेशी शक्ति बन चुका है। तकनीकी आत्मनिर्भरता, रणनीतिक साझेदारियाँ और वायुसेना की तत्परता – मिलकर भारत को आसमान से अजेय बना रहे हैं।