गोवा के मंदिर में मचा कोहराम: शिरगांव भगदड़ से क्या सीखा जाना चाहिए?
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गोवा के मंदिर शिरगांव गांव हर साल लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक धार्मिक आस्था का केंद्र होता है। यहां स्थित लईराई देवी मंदिर में आयोजित होने वाली वार्षिक जत्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि स्थानीय सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है। लेकिन 2025 की इस जत्रा में जो कुछ हुआ, उसने देशभर को झकझोर कर रख दिया।
1 मई 2025 की सुबह, लईराई देवी मंदिर में हजारों श्रद्धालु एकत्रित हुए थे। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता ढलानदार और संकीर्ण है। सुबह लगभग 5 बजे के आसपास, अचानक भगदड़ मच गई। इस हादसे में 6 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 30 से अधिक लोग घायल हुए।
📍 हादसे के मुख्य बिंदु:
हजारों की भीड़ एकत्रित थी, जबकि नियंत्रण के लिए पर्याप्त पुलिस नहीं थी।
श्रद्धालु धूप और गर्मी से बेहाल थे।
गिरने और कुचले जाने से मौतें हुईं।
मौके पर मेडिकल सुविधा देर से पहुंची।
📸 प्रत्यक्षदर्शियों की जुबानी
“हम मंदिर के गेट पर ही थे, तभी पीछे से धक्का लगा और लोग गिरने लगे…” – एक महिला श्रद्धालु “कोई सहायता नहीं थी, लोग अपने हाथों से घायलों को उठा रहे थे…” – स्थानीय निवासी
🧩 क्या था कारण?
1. अव्यवस्था और लापरवाही
Crowd Management की कोई ठोस योजना नहीं थी।
पुलिस बल और स्वयंसेवकों की संख्या जरूरत से बहुत कम थी।
2. अनियंत्रित श्रद्धालु संख्या
आयोजकों के पास श्रद्धालुओं का कोई अनुमान नहीं था।
सोशल मीडिया के प्रचार से भीड़ बढ़ गई।
3. इमरजेंसी रिस्पॉन्स की कमी
नजदीकी अस्पतालों को पहले से अलर्ट नहीं किया गया।
एंबुलेंस देर से पहुँचीं।
⚖️ प्रशासन की भूमिका
गोवा सरकार ने हादसे की जांच के आदेश दे दिए हैं। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मृतकों के परिजनों को ₹10 लाख मुआवज़ा देने की घोषणा की है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ये मुआवज़ा जान की कीमत है?
✅ 1. भीड़ नियंत्रण प्रणाली (Crowd Management) अनिवार्य होनी चाहिए
हर बड़े धार्मिक आयोजन में पुलिस और NDRF जैसी एजेंसियों को पहले से तैनात करना चाहिए।
✅ 2. प्रवेश और निकास मार्गों को खुला और व्यवस्थित रखना
बहुत से हादसे सिर्फ इसलिए होते हैं क्योंकि लोग एक ही रास्ते से आते-जाते हैं।
✅ 3. आपातकालीन सेवाओं की पूर्व व्यवस्था
हर मंदिर में फर्स्ट एड, एंबुलेंस और मेडिकल टीम का प्रबंध जरूरी है।
✅ 4. श्रद्धालुओं को जागरूक करना
भीड़ में धक्का-मुक्की न करें, बच्चों और बुजुर्गों को आगे न लाएं।
🏛️ क्या सरकार दोषी है?
यह कहना आसान है कि ये एक “दुर्घटना” थी, लेकिन प्रशासन की लापरवाही से इसे टाला जा सकता था।
अगर CCTV और ड्रोन निगरानी होती…
अगर मेडिकल कैंप पहले से लगे होते…
अगर श्रद्धालुओं की संख्या सीमित की गई होती…
तो शायद ये हादसा टल जाता।
🧾 मीडिया रिपोर्ट्स की सच्चाई
कुछ चैनलों ने इसे “अस्थायी भगदड़” बताया, लेकिन स्थानीय रिपोर्टर्स और वीडियो फुटेज कुछ और ही दर्शाते हैं – अफरातफरी, चीख-पुकार, और लोगों की लाशें।
🏥 घायलों का क्या हुआ?
घायल श्रद्धालुओं को:
गोवा मेडिकल कॉलेज, बम्बोलिम में भर्ती कराया गया।
कुछ को निजी अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया।
6 की हालत अब भी गंभीर बताई गई है।
📚 भारत में ऐसे हादसों का इतिहास
वर्ष
स्थान
मौतें
2013
रत्नागिरी (महाराष्ट्र)
15
2015
देवघर (झारखंड)
11
2016
बैद्यनाथ धाम
7
2022
माता वैष्णो देवी
12
2025
शिरगांव, गोवा
6
🤲 धार्मिक आयोजनों में प्रबंधन क्यों जरूरी है?
भारत में श्रद्धा की ताकत बहुत गहरी है। लेकिन यह जिम्मेदारी भी मांगती है। संगठकों, स्थानीय प्रशासन और सरकार को यह समझना होगा कि “सुरक्षा” अब एक धार्मिक जिम्मेदारी भी है।
🔚 निष्कर्ष
शिरगांव मंदिर भगदड़ एक ऐसा हादसा है जिससे देश को बहुत कुछ सीखना चाहिए। यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि सिस्टम की कमज़ोरी का आइना है। अगर अब भी हम नहीं चेते, तो अगला हादसा कहीं और इंतजार कर रहा होगा।